बिहार की राजनीति में बड़ा प्रशासनिक बदलाव देखने को मिला है। शुक्रवार को नीतीश कुमार सरकार ने मंत्रियों के बीच विभागों का बँटवारा कर दिया, और इसी के साथ दो दशकों में पहली बार बिहार का गृह विभाग मुख्यमंत्री के पास नहीं रहा। इस बार यह जिम्मेदारी उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी को सौंपी गई है, जो एनडीए में बीजेपी को मिली सबसे बड़ी शक्ति-साझेदारी में से एक मानी जा रही है।
पिछले 20 वर्षों में चाहे राजनीतिक समीकरण जो भी रहे हों, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हमेशा गृह विभाग अपने पास रखा था। लेकिन इस बार परंपरा टूट गई। बदले में जेडीयू को वित्त विभाग और वाणिज्यिक कर विभाग की कमान मिली है।
एनडीए में सत्ता-संतुलन का संकेत
बिहार में 89 सीटों के साथ बीजेपी इस समय सबसे बड़ी पार्टी है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि गृह विभाग का सम्राट चौधरी को दिया जाना एनडीए में शक्ति-संतुलन का संकेत है। यह बीजेपी की मजबूत स्थिति और प्रशासनिक फैसलों में उनकी भूमिका बढ़ने को दर्शाता है।
हालांकि जेडीयू ने इस बदलाव को लेकर किसी विशेष राजनीतिक अर्थ को नकार दिया है।
जेडीयू प्रवक्ता राजीव रंजन ने बीबीसी से कहा:
“इस कदम के अधिक मायने निकालने की जरूरत नहीं है। चाहे विभाग किसी के पास हो, फैसले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लिए जाते हैं।”
उधर जेडीयू के वरिष्ठ नेता नीरज कुमार ने पीटीआई से कहा:
“ये कोई विषय ही नहीं है। कानून-व्यवस्था हमारी यूएसपी है, और यह आगे भी बनी रहेगी।”
सम्राट चौधरी के लिए बड़ी जिम्मेदारी
सम्राट चौधरी के लिए गृह विभाग संभालना उनकी राजनीतिक भूमिका को और अधिक सशक्त बनाता है। कानून-व्यवस्था बिहार की राजनीति में हमेशा से मुख्य मुद्दा रहा है, खासकर बीजेपी के ‘गुड गवर्नेंस’ मॉडल में इसकी अहम जगह है। अब बिहार की पुलिसिंग, अपराध नियंत्रण और आंतरिक सुरक्षा से जुड़े फैसलों में सम्राट चौधरी की महत्वपूर्ण भूमिका होगी।
नीतीश कुमार की रणनीति?
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि नीतीश कुमार ने अपने इस कार्यकाल में सम्राट चौधरी और बीजेपी नेतृत्व को अधिक अधिकार देकर सरकार की स्थिरता और गठबंधन की मज़बूती का संदेश देने की कोशिश की है।
हालांकि अंतिम नियंत्रण और नीति-निर्धारण पर सीएम की पकड़ बरकरार रहने की बात जेडीयू द्वारा बार-बार दोहराई जा रही है।















