बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के बीच राज्य की राजनीति में बयानबाजी और वादों का दौर तेज हो गया है। इसी बीच आरजेडी नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने बड़ा चुनावी दांव खेला है। उन्होंने रविवार को एक जनसभा में ऐलान किया कि अगर राज्य में महागठबंधन की सरकार बनी, तो बिहार में ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) को लागू किया जाएगा।
तेजस्वी यादव ने कहा —
“हमारी सरकार बनते ही कर्मचारियों के हित में पुरानी पेंशन योजना को बहाल किया जाएगा। यह सिर्फ वादा नहीं, बल्कि लाखों कर्मचारियों और शिक्षकों के भविष्य की सुरक्षा का संकल्प है।”
उनके इस बयान से एनडीए खेमे में हलचल मच गई है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह कदम सीधे तौर पर सरकारी कर्मचारियों और शिक्षकों के वोट बैंक को साधने की रणनीति है, जो लंबे समय से OPS बहाली की मांग कर रहे हैं। बिहार में लगभग 6 लाख से अधिक राज्यकर्मी और शिक्षक नई पेंशन स्कीम (NPS) के तहत आते हैं, और उनमें से बड़ी संख्या OPS लागू करने की मांग को लेकर कई बार प्रदर्शन भी कर चुकी है।
तेजस्वी यादव ने कहा कि कई राज्य—जैसे राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड और हिमाचल प्रदेश—में पहले से ही ओल्ड पेंशन स्कीम लागू की जा चुकी है। “जब अन्य राज्यों में कर्मचारियों को OPS का लाभ मिल सकता है, तो बिहार के कर्मचारियों के साथ भेदभाव क्यों?” उन्होंने सवाल उठाया।
वहीं, एनडीए की तरफ से तेजस्वी के इस वादे पर कड़ी प्रतिक्रिया आई है। बीजेपी नेताओं का कहना है कि आरजेडी और महागठबंधन जनता को सिर्फ झूठे सपने दिखा रहे हैं। उनका कहना है कि तेजस्वी यादव को पहले यह बताना चाहिए कि ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने के लिए वित्तीय संसाधन कहां से आएंगे, क्योंकि इससे राज्य के बजट पर भारी बोझ पड़ेगा।
बीजेपी प्रवक्ता ने कहा, “तेजस्वी यादव जानते हैं कि बिहार की आर्थिक स्थिति पहले से ही कमजोर है। ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करना वित्तीय आत्मघात जैसा कदम होगा, लेकिन वे इसे चुनावी हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं।”
दूसरी ओर, आरजेडी समर्थक और सरकारी कर्मचारी संगठनों ने तेजस्वी के बयान का स्वागत किया है। सोशल मीडिया पर भी उनके इस ऐलान को लेकर बहस तेज हो गई है। कई कर्मचारी संगठनों ने कहा कि अगर महागठबंधन की सरकार बनी, तो यह निर्णय राज्य के कर्मचारियों के लिए राहत की सांस लेकर आएगा।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बिहार चुनाव के इस दौर में ओल्ड पेंशन स्कीम जैसा मुद्दा सरकार-विरोधी माहौल को हवा दे सकता है। यह न सिर्फ कर्मचारियों को प्रभावित करेगा, बल्कि उनके परिवारों और ग्रामीण वोटरों पर भी असर डाल सकता है।
तेजस्वी यादव का यह कदम निश्चित रूप से एनडीए के लिए सिरदर्द साबित हो सकता है, खासकर तब जब चुनावी माहौल पहले से ही महंगाई, बेरोजगारी और किसान मुद्दों से गरम है।


















