पश्चिम बंगाल में विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण (SIR) को लेकर राजनीतिक टकराव नए स्तर पर पहुंच गया है। चुनाव आयोग के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार अब तक 13.92 लाख फॉर्म ऐसे पाए गए हैं जिन्हें अनकलेक्टेबल मानते हुए जांच के दायरे में रखा गया है। इनमें मृत मतदाता, दोहरी प्रविष्टि, स्थायी रूप से राज्य छोड़ चुके लोग और लंबे समय से अपने पते पर अनुपलब्ध मतदाता शामिल हैं। सोमवार तक यह संख्या 10.33 लाख थी, जो दो दिनों में ही लाखों की बढ़ोतरी को दिखाती है।
राज्य में SIR प्रक्रिया के लिए 80,600 से अधिक BLO, 8,000 सुपरवाइज़र, 3,000 AERO और 294 ERO तैनात किए गए हैं। इसी दौरान तीन BLO की मौत की खबर ने सियासी तापमान और बढ़ा दिया है। टीएमसी ने आरोप लगाया है कि चुनाव आयोग की “लापरवाही और दबाव” के कारण ये मौतें हुईं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक अधिकारी पर BLOs को नौकरी छीनने और जेल भेजने की धमकी देने का आरोप लगाया।
इधर मतदाता सूची पुनरीक्षण की प्रक्रिया के बीच गैर-क़ानूनी घुसपैठियों के राज्य छोड़ने की घटनाएं भी सामने आ रही हैं। नॉर्थ 24 परगना में बांग्लादेश लौटने की तैयारी कर रहे अबुल हुसैन ने स्वीकार किया कि वह अवैध रूप से भारत में दाखिल हुआ था और उसने अपने परिवार के पाँच सदस्यों के आधार, पैन और राशन कार्ड बनवा लिए थे। वह दो साल से सरकारी राशन भी ले रहा था।
उधर चुनाव आयोग ने 28 नवंबर को टीएमसी के 10 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात का समय तय किया है। प्रतिनिधिमंडल में डेरेक ओ’ब्रायन, महुआ मोइत्रा, कल्याण बनर्जी और साकेत गोखले जैसे नेता शामिल होंगे। टीएमसी का आरोप है कि 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची में “व्यवस्थित तरीके से छेड़छाड़” की जा रही है। बीजेपी ने टीएमसी के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि यह प्रक्रिया घुसपैठियों की पहचान और पारदर्शी चुनाव सुनिश्चित करने के लिए चल रही है।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कृष्णनगर की सभा में केंद्र सरकार और चुनाव आयोग पर सीधा हमला बोलते हुए कहा कि SIR के नाम पर “बंगाल और उन्हें टारगेट” किया जा रहा है। उन्होंने दावा किया कि इस प्रक्रिया से जुड़े तनाव के कारण 35–36 मौतें, जिनमें कई आत्महत्याएं शामिल हैं, हो चुकी हैं। उन्होंने लोगों से अपील की कि SIR के डर से जान न दें और भरोसा दिलाया कि “कोई असली मतदाता सूची से बाहर नहीं होगा।”
चुनाव आयोग द्वारा SIR प्रक्रिया को दो महीनों में पूरा करने की मंशा पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। ममता ने कहा कि 2002 में इसी तरह की प्रक्रिया तीन साल चली थी। बढ़ती राजनीतिक तल्खी, घुसपैठियों के पलायन की खबरें और आयोग-सरकार के बीच टकराव ने बंगाल में एक उथल-पुथल भरा राजनीतिक माहौल बना दिया है। विश्लेषकों का मानना है कि इसका सीधा असर आने वाले विधानसभा चुनाव 2026 पर दिखेगा।
राहुल कुमार की रिपोर्ट

















