बिहार की राजनीति में शुक्रवार की सुबह एक नए सियासी मौसम की दस्तक लेकर आई। विधानसभा चुनाव 2025 के शुरुआती रुझानों ने साफ कर दिया है कि एनडीए सिर्फ़ बहुमत की जंग नहीं लड़ रहा, बल्कि अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्य “160 पार” की ओर तेज़ी से बढ़ता दिखाई दे रहा है। 243 सीटों वाली विधानसभा में जहाँ 121 बहुमत का आंकड़ा है, वहीं एनडीए उससे कहीं आगे जाता हुआ दिख रहा है।
दूसरी ओर, तेजस्वी यादव की अगुवाई वाला महागठबंधन अपनी पकड़ बचाए रखने के लिए पूरी ताक़त झोंक रहा है। लेकिन शुरुआती रुझानों में हवा एनडीए के पक्ष में बहती दिख रही है।
नीतीश कुमार की सबसे बड़ी ‘अग्निपरीक्षा’—और एक और सफल पार
2025 का यह चुनाव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राजनीतिक यात्रा की सबसे कठिन परीक्षा माना जा रहा था। हर तरफ यह सवाल था कि क्या नीतीश इस बार भी अपनी राजनीतिक पकड़ साबित कर पाएँगे।
लेकिन शुरुआती रुझानों ने संकेत दे दिया है कि नीतीश एक बार फिर बिहार की सत्ता की धुरी बने हुए हैं।
विपक्ष उन्हें चाहे जितना “पलटू राम” कहे, मगर यह भी सच है कि वह पिछले दो दशकों से अपनी सियासी जमीन और जनाधार को लगातार मजबूत बनाए हुए हैं। उनकी स्वीकार्यता आज भी बिहार के हर इलाके और कई सामाजिक वर्गों में स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।
क्या है नीतीश की सफलता की असली चाबी?
नीतीश की स्थायी लोकप्रियता की तीन सबसे बड़ी वजहें मानी जा रही हैं:
1. विकास का ज़मीनी मॉडल
ग्रामीण इलाकों में सड़क, बिजली, स्वास्थ्य और शिक्षा की आधारभूत संरचना में उल्लेखनीय सुधार।
2. सामाजिक कल्याण योजनाएँ
- पेंशन योजनाओं का विस्तार
- विद्यालय कर्मियों का मानदेय दोगुना
- लगभग 1 करोड़ महिलाओं को आर्थिक सहायता
इन योजनाओं ने जनता में नीतीश के प्रति मजबूत भरोसा पैदा किया है।
3. व्यापक सामाजिक समीकरण
नीतीश का समर्थन एक जाति तक सीमित नहीं है।
उनके साथ खड़े हैं—
उच्च जातियाँ, कुशवाहा, पासवान, मुसहर, मल्लाह और कई पिछड़े समुदाय।
इसी व्यापक गठजोड़ ने उन्हें बिहार की राजनीति में एक अद्वितीय और स्थायी स्थान दिया है।
बिहार का राजनीतिक तापमान तेजी से बदल रहा है, और रुझानों से साफ है कि एनडीए की लहर इस बार बेहद मजबूत दिखाई दे रही है। आगे की गिनती यह तय करेगी कि आखिर इस चुनावी जंग में किसकी जीत का परचम लहराता है—लेकिन फिलहाल तस्वीर एनडीए के पक्ष में साफ दिख रही है।

















