बिहार विधानसभा चुनाव 2025 कई मायनों में रिकॉर्ड तोड़ साबित हुआ। इस चुनाव में मतदान प्रतिशत ने आजादी के बाद के सभी आंकड़ों को पीछे छोड़ दिया।
एनडीए का प्रदर्शन और तीसरी ताकत की कमी
एनडीए गठबंधन इस बार 5 सीट के फासले से 2010 के अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन से पीछे रह गया, जब केवल बीजेपी और जेडीयू को 206 सीटें मिली थीं।
चुनाव में एक और बड़ा रिकॉर्ड बना—विधानसभा में एक भी निर्दलीय विधायक नहीं पहुंचे।
2000 से अब तक निर्दलीय विधायकों की संख्या में लगातार गिरावट देखने को मिली थी। 2000 में 33 निर्दलीय विधायक जीत चुके थे, 2020 में केवल 1 और इस बार 0
वोटर का द्विध्रुवीय मतदान
चुनाव आंकड़े दर्शाते हैं कि बिहार के मतदाता द्विध्रुवीय मतदान कर रहे हैं।
2000 में अन्य दलों और निर्दलीय मिलकर 36.8% वोट हासिल करते थे।
2025 में यह संख्या घटकर केवल 15.5% रह गई।
महागठबंधन का वोट प्रतिशत 2020 में 37.2% था, जो 2025 में 37.9% हुआ।
तीसरी ताकत का लगभग 10% वोट एनडीए की ओर चला गया, जिससे एनडीए को निर्णायक बढ़त मिली।
निर्दलीय विधायकों का इतिहास और गिरावट
लालू यादव के मुख्यमंत्री बनने से पहले 1990 में निर्दलीय विधायकों की संख्या 30 थी।
इसके बाद लगातार गिरावट होती रही: 1995 में 11, 2000 में 20, 2005 फरवरी में 17, अक्टूबर में 10, 2010 में 6, 2015 में 4, 2020 में 1 और अब 0।
2020 में जीतने वाले एकमात्र निर्दलीय सुमित सिंह को नीतीश कुमार ने मंत्री बनाया था, लेकिन इस बार जेडीयू टिकट पर हार गए।
स्वतंत्र उम्मीदवारों में सबसे ज्यादा वोट राजद की बागी रितु जायसवाल को मिला, जिन्होंने परिहार सीट पर दूसरे स्थान पर रहकर राजद को तीसरे स्थान पर धकेल दिया।
राजनीतिक निष्कर्ष
बिहार की राजनीति अब द्विध्रुवीय और एनडीए-महागठबंधन केंद्रित हो चुकी है।
तीसरी ताकत और निर्दलीय उम्मीदवारों का प्रभाव लगातार घट रहा है।
एनडीए को निर्णायक बढ़त और प्रचंड जीत में इस बदलाव का बड़ा योगदान माना जा रहा है।















