भारत की अर्थव्यवस्था के लिए चिंता बढ़ाने वाली खबर सामने आई है। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया लगातार कमजोर होता जा रहा है और अब तक के सर्वकालिक निचले स्तर पर पहुंच गया है। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, भारतीय रुपया 0.2 प्रतिशत गिरकर 90.6475 प्रति डॉलर तक पहुंच गया, जो 12 दिसंबर को बने पिछले रिकॉर्ड 90.55 को भी पार कर गया है।
रुपये में आई इस तेज गिरावट की मुख्य वजह अमेरिका-भारत व्यापार वार्ता में गतिरोध और विदेशी निवेशकों की भारी बिकवाली बताई जा रही है। विदेशी संस्थागत निवेशक लगातार भारतीय बाजार से पैसा निकाल रहे हैं, जिससे मुद्रा पर दबाव और बढ़ गया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि कमजोर व्यापार समझौते, बढ़ता चालू खाता घाटा और सरकार की स्पष्ट आर्थिक रणनीति के अभाव ने रुपये को और कमजोर कर दिया है। इसके साथ ही डॉलर की मजबूती ने भारत जैसे उभरते बाजारों की मुद्राओं को बुरी तरह प्रभावित किया है।
रुपये की गिरावट का सीधा असर महंगाई, ईंधन कीमतों, आयात खर्च और आम जनता की जेब पर पड़ेगा। कच्चा तेल, खाद्य तेल और इलेक्ट्रॉनिक सामान जैसे आयातित उत्पाद और महंगे हो सकते हैं। इसके बावजूद सरकार की ओर से अब तक कोई ठोस और भरोसेमंद बयान सामने नहीं आया है।
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि यदि हालात ऐसे ही बने रहे, तो आने वाले दिनों में रुपया 91 प्रति डॉलर के स्तर को भी छू सकता है। सवाल यह उठता है कि क्या सरकार और रिजर्व बैंक के पास रुपये को संभालने के लिए कोई प्रभावी योजना है, या फिर आम जनता को महंगाई की और मार झेलनी पड़ेगी।

















