बिहार के जमुई जिले में पर्यावरण संरक्षण को नई दिशा देने वाला बड़ा कदम उठाया गया है। झाझा प्रखंड स्थित नागी जलाशय क्षेत्र में देश का छठवां गिद्ध संरक्षण और प्रजनन केंद्र स्थापित किया जाएगा। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग ने इस परियोजना को अंतिम मंजूरी दे दी है। स्थानीय प्रशासन ने भी तैयारियाँ तेज कर दी हैं।
गिद्धों की तेजी से घटती आबादी ने बढ़ाई चिंता
जिला वन पदाधिकारी के अनुसार, इस वर्ष सर्दी और गर्मी के बीच नागी जलाशय क्षेत्र में दुर्लभ प्रजाति हिमालयन ग्रीफॉन (हिमालयन गिद्ध) का आगमन हुआ था। यह गिद्ध आमतौर पर नेपाल, तिब्बत और भूटान जैसे ठंडे इलाकों में पाया जाता है। इसके आगमन के बाद विभाग ने यहाँ संरक्षण केंद्र खोलने पर गंभीरता से विचार किया और अब इसे अंतिम मंजूरी मिल चुकी है।
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) ने 2018 में भारत में पाए जाने वाले सभी गिद्ध प्रजातियों को दुर्लभ और विलुप्तप्राय की श्रेणी में रखा था।
भारत में गिद्धों की कुल 9 प्रजातियाँ पाई जाती हैं—
भारतीय गिद्ध, लंबी चोंच वाला गिद्ध, इजिप्टियन गिद्ध, लंब्रगियर गिद्ध, यूरेशियन गिद्ध, लाल सिर वाला गिद्ध, सफेद पृष्ठभूमि वाला गिद्ध, स्लेंडर बिल्ड गिद्ध और सफेद गिद्ध।
केमिकल-मुक्त मांस से होगी गिद्धों की ‘फीडिंग’
सभी प्रजातियों के गिद्ध मृत मवेशियों का मांस खाते हैं। नागी में बनाए जा रहे संरक्षण केंद्र में गिद्धों को केमिकल और दर्द निवारक दवाओं के असर से मुक्त मांस दिया जाएगा।
इसके लिए स्थानीय लोगों से भी संवाद स्थापित किया गया है ताकि मृत मवेशियों का सुरक्षित मांस उपलब्ध कराया जा सके।
प्रत्येक मांस की पहले पशु चिकित्सक द्वारा जांच की जाएगी।
1999 के बाद गिद्धों की संख्या में भारी गिरावट
पक्षी विशेषज्ञ अरविंद कुमार मिश्रा के अनुसार, गिद्ध प्रकृति के “सफाई कर्मी” होते हैं और मृत पशुओं को खाकर पर्यावरण को प्रदूषण से बचाते हैं।
उन्होंने बताया कि वर्ष 1999 के बाद गिद्धों की संख्या में तेज़ी से कमी आई है।
सबसे बड़ी वजह —
मवेशियों को दी जाने वाली दर्द निवारक दवाओं (डाइक्लोफिनाक जैसे केमिकल) के अवशेष मांस में रह जाते हैं, जिसे खाने से गिद्धों की किडनी फेल हो जाती है।
इसी वजह से लंबी चोंच वाला, सफेद पृष्ठभूमि वाला, भारतीय और स्लेंडर बिल्ड गिद्धों की मौत सबसे अधिक हुई।
सरकार ने अब कई खतरनाक दर्द निवारक दवाओं की बिक्री पर रोक लगा दी है।
एक वर्ष में सिर्फ एक अंडा—इसलिए बढ़ना मुश्किल
गिद्धों की आबादी तेजी से इसलिए भी नहीं बढ़ पाती क्योंकि
एक गिद्ध साल में केवल एक अंडा देता है।
इससे प्रजनन दर बहुत धीमी रहती है।
देशभर में चल रहे सभी गिद्ध संरक्षण और प्रजनन केंद्रों का संचालन बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (BNHS) के तकनीकी सहयोग से किया जा रहा है। जमुई केंद्र भी इसी मॉडल पर विकसित होगा।
अजय शास्त्री की रिपोर्ट

















