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ऑनलाइन अश्लील व अवैध कंटेंट पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, निष्पक्ष और स्वतंत्र नियामक संस्था गठन की जरूरत बताई

नई दिल्ली।
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म पर बढ़ती अश्लील, आपत्तिजनक और अवैध सामग्री को गंभीर मुद्दा बताते हुए इसके नियंत्रण के लिए एक “निष्पक्ष, स्वतंत्र और स्वायत्त” नियामक संस्था बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मीडिया संस्थानों और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म द्वारा अपनाया गया सेल्फ-रेगुलेशन मॉडल अब प्रभावी नहीं रह गया है, इसलिए ठोस और जवाबदेह व्यवस्था जरूरी है।

यह टिप्पणी पॉडकास्टर रणवीर इलाहाबादिया (बीयरबाइसेप्स) और अन्य क्रिएटर्स की उन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान आई, जो ‘इंडियाज़ गॉट लेटेंट’ शो में अश्लील सामग्री को लेकर दर्ज एफआईआर से जुड़ी हुई हैं। कुछ महीने पहले यह शो विवादों में घिरा था, जिसके बाद मामले ने कानूनी रूप लिया।

सरकार ने पेश किए नए प्रस्तावित दिशानिर्देश

लाइव लॉ के अनुसार, सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि केंद्र सरकार ऑनलाइन कंटेंट को नियंत्रित करने के लिए नए दिशानिर्देशों पर काम कर रही है। यह मुद्दा कई संबंधित पक्षों से चर्चा के बाद आगे बढ़ाया जा रहा है।

सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि समस्या केवल अश्लीलता तक सीमित नहीं है, बल्कि यूज़र-जनरेटेड कंटेंट (UGC) में फैल रही झूठी और भ्रामक जानकारी भी बड़ी चुनौती बन गई है। लोग बिना किसी जवाबदेही के अपने यूट्यूब चैनलों और अन्य सोशल प्लेटफ़ॉर्म पर गलत जानकारी फैला रहे हैं।

सीजेआई की नाराजगी—“कंटेंट क्रिएटर्स के लिए कोई नियम ही नहीं!”

मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने चिंता जताते हुए कहा कि डिजिटल युग में कोई भी आसानी से अपना चैनल बनाकर अनियंत्रित तरीके से कंटेंट प्रसारित कर सकता है, जबकि उसकी कोई स्पष्ट जवाबदेही तय नहीं है।

उन्होंने कहा:
“मैं अपना चैनल बना लूं और मैं किसी के प्रति जवाबदेह न रहूं… ऐसा कैसे चल सकता है? किसी न किसी को तो जवाबदेह होना चाहिए।”

एडल्ट कंटेंट पर चेतावनी अनिवार्य हो—सुप्रीम कोर्ट

द इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, सीजेआई ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान करते हुए कहा कि अगर किसी कार्यक्रम में एडल्ट सामग्री है, तो दर्शकों को पहले से साफ चेतावनी दी जानी चाहिए।
उन्होंने यह भी जोड़ दिया कि उद्देश्य सेंसरशिप लगाना नहीं, बल्कि दर्शकों की सुरक्षा और डिजिटल जिम्मेदारी को मजबूत करना है।

क्या बन सकता है बड़ा डिजिटल रेगुलेशन मॉडल?

कोर्ट और सरकार दोनों की इस सक्रियता को देखते हुए माना जा रहा है कि आने वाले समय में डिजिटल कंटेंट, पॉडकास्ट, यूट्यूब वीडियो और सोशल मीडिया पोस्ट के लिए एक केंद्रीकृत और स्वतंत्र रेगुलेटरी फ्रेमवर्क लाया जा सकता है।
यह मॉडल—

अश्लील कंटेंट

भ्रामक जानकारी

फेक न्यूज

यूज़र-जनरेटेड कंटेंट
—सभी को नियंत्रित कर सकता है।

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